हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Monday, 13 July 2009
पत्रकारिता का नया स्टाइल
देश-विदेश के किसी और स्थान का तो मालूम नहीं लेकिन श्रीगंगानगर में पत्रकारिता का नया स्टाइल शुरू हो चुका है। स्टाइल अच्छा है या बुरा,सही है या ग़लत,गरिमा युक्त है या नहीं,इस बारे में टिप्पणी करने के लिए यह नहीं लिखा जा रहा। जब कहीं किसी नगर या महानगर में कोई फैशन आरम्भ होता है तो उसकी जानकारी दुनिया में पहुँच जाती है, पहुंचाई जाती है। बस, इसी मकसद से यह पोस्ट है। अरे नहीं भाई, हम पत्रकारिता को फैशन के समकक्ष नहीं रख रहे। हम तो केवल बता रहें हैं कि हमारे नगर में क्या हो रहा है। हम इस बात पर गर्व करते हैं कि हमारे शहर में एक दर्जन अखबार निकलते हैं,पूरी शानो-शौकत के साथ। इसके साथ अब स्कूल,कॉलेज,हॉस्पिटल जैसे कारोबार से जुड़े लोगों ने भी अपने अपने साप्ताहिक,पाक्षिक,मासिक अख़बार निकालने शुरू कर दिए हैं। इन अख़बारों में अपने संस्थान की उपलब्धियों का जिक्र इन मालिकों द्वारा किया जाता है। मतलब अपने कारोबार के प्रचार का आसन तरीका। स्कूल वाले अपने स्कूल के बच्चों की पब्लिसिटी करेंगें। हॉस्पिटल संचालक डॉक्टर द्वारा किए इलाज की। बीजवाला अपने खेत या प्लांट में तैयार किए गए बीज के बारे में बतायेंगें। जिन के पास अख़बार को संभालने वाले व्यक्ति होते हैं वे अपने स्तर पर इसको तैयार करवाते हैं। अन्य किसी पत्रकार की पार्ट टाइम सेवा ले लेता है। हालाँकि इन अख़बारों को अन्य अख़बारों की भांति बेचा नहीं जाता। ये सम्भव है कि स्कूल संचालक अख़बार की कीमत,टोकन मनी, फीस के साथ ले लेते हों। ये अखबार बिक्री के लिए होते ही नहीं। हाँ, स्कूल का अखबार जब बच्चे के साथ घर आएगा तो अभिभावक उसको देखेंगें ही। बच्चे की फोटो होगी तो उसको अन्य को भी दिखाएंगें,बतायेंगें। अब,जब अखबार है तो उसके लिए वही सब ओपचारिकता पूरी करनी होती हैं जो बाकी अख़बार वाले करते हैं। जब,सब ओपचारिकता पूरी करनी हैं तो फ़िर वह कारोबारी अपनी महंगी,सस्ती कार पर भी प्रेस लिखने का "अधिकारी" तो हो ही गया। बेशक इस प्रेस का दुरूपयोग ना होता हो, लेकिन प्रेस तो प्रेस है भाई। श्रीगंगानगर में यह स्टाइल उसी प्रकार बढ़ रहा है जैसे शिक्षा और चिकत्सा का कारोबार।
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2 comments:
patrakarita wk business me tabdeel ho chuki hai. iss kadi me ek adhyay aur..
sahee sochana kahana aur likhana bhee ......
aaj kee duniya me kafee kam log ye sahas juta pate hai.
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