Friday, 2 May 2014

मोहब्बत तो कभी मरने की बात नहीं करती



श्रीगंगानगर-किस्सा फेसबुक से. ढाई दशक बाद एक व्यक्ति को महिला का सन्देश मिला, आई लव यू.व्यक्ति हैरान ! महिला ने बताया कि वो तो उससे तभी से मोहब्बत करती है जब शादी नहीं हुई थी. बन्दे को क्या पता. न कभी मिले . ना कभी जिक्र ही आया. फिर अब अचानक,ढाई दशक बाद, जब दोनों के बच्चों तक की शादी हो चुकी है.इक तरफ़ा मोहब्बत चलती रही,पलती रही.है ना मोहब्बत का अनूठा अंदाज. दूसरा,. दोनों की कास्ट अलग. मोहब्बत बे हिसाब. परिवार राजी नहीं. कोशिश की.शादी नहीं हो सकी. अलग अलग हो गए. तीस सालों में एक दो बार जब कभी मिले वैसी ही आत्मीयता वही मोहब्बत. तीसरा, लड़का सवर्ण ,लड़की दूसरी कास्ट की. संयोग ऐसा हुआ कि दोनों परिवारों को शादी करनी पड़ी. लड़की ने अपने आप को उस परिवार में ऐसा ढाला कि क्या कहने. किसी को कोई शिकवा शिकायत नहीं. चौथा,लड़का अपने इधर का. लड़की साउथ की. लड़का शानदार पोस्ट पर. परिवार उस लड़की से शादी करने को राजी नहीं. लेकिन लड़का-लड़की ने शादी कर ली. धीरे धीरे परिवार वालों ने भी उसे बहु के रूप में स्वीकार कर लिया. बहु जब भी पति के साथ छुट्टियों में  इधर आती है ,वह अपने संस्कार,काम और बोल चाल से ससुराल वालों का दिल जीतने की कोशिश करती है. ये किस्से कहानी नहीं हकीकत हैं.सब के सब जिन्दा और खुश हैं अपने अपने घर. परन्तु आजकल का तो प्रेम हो ही बड़ा अनोखा गया. इसमें मरने मारने की बात  पता नहीं कहां से आ गई. आजकल कभी प्रेमी-प्रेमिका के एक साथ मरने की घटना होती है तो कभी प्रेमी द्वारा प्रेमिका को मार देनी की. बड़ा अजीब है उनका प्रेम! साथ मरने का ये मतलब नहीं कि वे मरने के बाद साथ रहेंगे. ये फ़िल्मी डायलॉग है कि नीचे मरेंगे तो ऊपर मिलेंगे. दुनिया ने हमें इधर नहीं मिलने दिया,मरकर उधर मिलेंगे,आदि आदि.इस धरती पर मिलन उसी का होता है जो जिन्दा है. मरने के बाद की तथाकथित दुनिया किसने देखी. जो दुनिया देखी नहीं उसमें मिलने के लिए उस दुनिया से चले जाना जिधर मिलने की संभावना रहती है, कौनसी मोहब्बत हुई. ये तो मोहब्बत नहीं कोई आकर्षण था. मोहब्बत में सराबोर नहीं थे,शारीरिक आकर्षण में डूबे थे. जिन्दा रहोगे तो मिलने की आस रहेगी.मरने के बाद तो कुछ भी इन्हीं. मरने वाले बता नहीं सकते कि लो देखो, हम मर कर  मिल गए और सुखी हैं. भावुकता के अतिरेक में मर तो गए लेकिन उसके बाद!  तुम तो मर गए लेकिन परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा तो मिट्टी कर गए.तुम तो अपने ख्याल में मर कर मिल गए ,मगर परिवार को तो किसी से मिलने-मिलाने लायक नहीं छोड़ा. उन मां-बाप का क्या जो जिन्दा  लाश बन गए.घरमें रहो तो  की दीवारें खाने को आती हैं और बाहर लोगों की बातें तीर की तरह बींधती हैं. तुम तो चले गए,लेकिन बाकी भाई बहिन के रिश्तों पर ग्रहण लग जाता है. रिश्ते तो होंगे  लेकिन उनमें  समझौता अधिक होता होगा. जिसके किसी भाई-बहिन ने इस प्रकार मोहब्बत में जान दी हो,उनसे रिश्ते जोड़ने वाले मुश्किल से ही मिलते हैं. इसके लिए कसूरवार कौन है,ईश्वर जाने. लेकिन ये बड़ी अजीब बात है कि दशकों पहले जब इतना खुलापन नहीं था तब तो लोग मोहब्बत में जीने की बात करते थे. अब जब इण्टर कास्ट शादी आम होने लगी है. तब लड़का-लड़की का मरना हैरानी पैदा करता है. मोहब्बत तो जिंदगी में आनंद भरती है.लोग निराश,हताश,उदास होकर मरने क्यों लगे. ऊपर के किस्सों में दो रस्ते हैं.पहला , परिवार की इच्छा को मान देकर रस्ते बदल लो.मोहब्बत में त्याग को महत्व दो. दूसरा, अपनी परिवार की इच्छा को नजर अंदाज कर अपनी मर्जी करो. होता है जो हो जाने दो. समय की राह देखो, जो सब कुछ ठीक कर देता है. मरने की बात तो मोहब्बत में होनी ही नहीं चाहिए. शायद  पहले मोहब्बत बाजरे की खिचड़ी की तरह होती थी जो धीमी आंच पर धीरे धीरे सीज कर स्वादिष्ट बनती थी. अब तो  मोहब्बत दो मिनट की मैगी स्टाइल हो गई है.बनाओ,खाओ और भूल जाओ. दो लाइन पढ़ो--जीने की नहीं मरने की बात करता है हर वक्त, बड़ा कमजोर हो गया है ये नए दौर का इश्क .