श्रीगंगानगर-वह जमाना और था जब नाई,पंडित या घर का मुखिया लड़का-लड़की का
रिश्ता तय कर देता था। उन रिश्तों की गरमाहट हमेशा रहती। समय
बढ़ा...रिश्ते करने का ढंग बदला...खटपट होती...होती रहती...रिश्ते निभते...निभाए
जाते...घरों की आन,बान शान के लिए। समय तेजी से
आगे चला...बहुओं को प्रताड़ना मिलने लगी...कथित रूप से मारा जाना लगा।
कानून बना उनकी सुरक्षा के लिए। अब तो
बात ही अलग है। प्रताड़ना बहू को नहीं सास-ससुर को दी जाती है। मज़ाक नहीं सही है।
कितने ही परिवार हैं जो बहू की प्रताड़ना का संताप झेल रहें हैं। बहू मनमर्जी करती
है। उसकी हर जरूरी गैर जरूरी मांग को पूरा करने की कोशिश की जाती है। शिकायत किसको
करे! करें तो घर की इज्जत पर आंच आती है। लोग क्या कहेंगे! भिन्न भिन्न प्रकार की
बात होगी। बात एक से अनेक व्यक्तियों तक जाएगी। रिश्तेदारों को पता चलेगा। बस,रिश्तेदारों और समाज के डर से अनेक परिवार बहू की प्रताड़ना को घुट घुट कर सहने को मजबूर हैं। हाय, बहू कुछ कर ना ले....हाय बहू कोर्ट कचहरी ना
दिखा दे....हे भगवान पीहर वाले थाने
में शिकायत ना कर दें। इस आशंका के कारण सास ससुर भीगी
बिल्ली बने बहू की हां में हां मिलाने को बेबस हैं। क्योंकि कुछ अनहोनी हो गई तो गया पूरा परिवार अंदर। कोई सुनवाई नहीं...कोई सफाई
नहीं। पैसा गया...इज्जत गई साथ में चला जाता
है कारोबार...मन की शांति। कानून,पुलिस
तो जैसी है,है। समाज को,सामाजिक संगठनों को तो कुछ ऐसा करना चाहिए
जिससे इस प्रकार के परिवारों को सहारा मिले। बहुओं से प्रताड़ित परिवार अपने मन की आशंकाओं
को उनके साथ सांझा कर सुकून प्राप्त करें। ये किसी एक समाज की बात नहीं है। लगभग
हर समाज में ऐसे घर हैं जहां एक बहू से पूरा घर प्रताड़ित है। कोई तो हो जो इस
प्रकार के परिवारों को घुट घुट कर मरने से बचा सके। जिसकी लड़की जाती है या परेशान
रहती है। उनको भी तसल्ली मिले। उनके आंसुओं की भी कद्र हो....उनकी भावनाओं को समझा
जाए...उनको न्याय मिले। परंतु यह सब किसी और के साथ नाइंसाफी की
कीमत पर ना हो। और यह सब समाज कर सकता है...क्योंकि जैसा समाज होता
है वैसे ही हम होते हैं। इस पर जल्दी विचार नहीं हुआ तो समाज में अच्छा बहुत कम
होगा। दो लाइन हैं...कोशिश करके देख “आरसी” पौंछ सके तो आंसू
पौंछ,बाँट सके तो दर्द बाँट ले,पीर सदा बेगानी लिख।
हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Wednesday, 23 May 2012
Thursday, 17 May 2012
गौरव की बात है आईपीएस होना यहां आना हमारा दुर्भाग्य
श्रीगंगानगर-श्रीमानआईपीएस
गगनदीप सिंगला जी बिना नमस्कार के ही बात शुरू करनी पड़ेगी....क्योंकि आप अहंकारी हो,अव्यवहारिक हो ....आपने नमस्कार का जवाब
देना नहीं इसलिए आपको नमस्कार करके अपना अपमान क्यों करवाऊँ। सिंगला जी आपने आईपीएस बनकर यहाँ की जनता पर
कोई अहसान नहीं किया। ना तो जनता ने आपके यहां जाकर आपके परिवार से अनुनय विनय की
और ना भगवान से प्रार्थना। यह सौ प्रतिशत आपकी मेहनत,लगन और परिवार की मंगलभावना थी जो आप आईपीएस बने।
हमारा दुर्भाग्य जो आप प्रशिक्षण के लिए यहां आए। दुर्भाग्य इसलिए कि जो यहां
प्रशिक्षण प्राप्त करता है वह एक दिन एसपी बनकर यहां आता है। अगर आप
एसपी बनकर आए और आपका स्वभाव और व्यवहार यही रहा तो आपको तो पता नहीं लेकिन जनता को
मुश्किल होगी...बहुत मुश्किल। मैंने तो पढ़ा था....आपने पढ़ा कि नहीं पता
नहीं...कि ज्ञानवान,गुणवान,बड़े पद वाले इंसान बहुत विनम्र,शालीन होते हैं...आपके इर्द गिर्द तो यह सब है ही नहीं। आईपीएस होना
अलग है और ज्ञानवान,गुणवान,व्यवहार कुशल,संस्कारी होना अलग।आईपीएस तो किताबें रट कर मेहनती युवक बन सकता है। परंतु
दूसरे गुणों के लिए अपने अंदर झांकना पड़ता है। दूसरों का दर्द,पीड़ा को समझना होता है। ये सब आप करेंगे ऐसा
आपका व्यवहार से लगता नहीं। आईपीएस बनना खुद के लिए,घर,समाज,राज्य के लिए गौरव की बात है। यह गौरव आप बढ़िया
काम से,विनम्रता से,व्यवहार कुशलता से और अधिक बढ़ा सकते हो। यह सब करने का
आपके पास अभी तो समय है। एक बार समय हाथ से निकल गया तो आप आईपीएस तो
रहेंगे...नाम और दाम भी होंगे आपके पास...किन्तु जनता के दिलों में आपका कोई स्थान नहीं होगा।
जहां जाएंगे वहाँ की जनता आपके तुरंत वापिस जाने की दुआ करेगी। निर्णय आपने करना
है....हमारा काम तो लिखना है...मानो ना मानो आपकी मर्जी। आपका स्वभाव ये बताता है
कि आपने इस लिखे पर गौर तो क्या करना है...लिखने वाले के प्रति मन में गांठ जरूर बांध लेनी
है। अकील नूमामी की लाइन है....सिर्फ ले देके यही एक कमी है हममें,हम हर इक शख़्स को इंसान समझ लेते हैं।
Friday, 11 May 2012
ये एसपी तो मस्त है यार
श्रीगंगानगर-जिले का
एसपी हंसते हुए मिले तो मुलाकाती के मन को सुकून मिलता है। सुकून की यह सरिता यहां
तब तक बहती रहेगी जब तक चालके संतोष कुमार तुकाराम यहां रहेंगे। यस, ऐसे ही हैं संतोष चालके....इस जिले के नए एसपी। सभी
से दिल खोलकर...चेहरे पर एवरग्रीन स्माइल के साथ मिलते हैं एसपी। आओ....मिलो....बात करो और जाओ।
गप्प बाजी के लिए समय नहीं। वेटिंग रूम खाली रहना चाहिए ताकि अन्य जरूरी काम होते
रहें। वे कहते हैं.....सभी से मिलना...व्यवहार कुशलता....ऑफिसर
का सम्मान....कोई काम नहीं तब भी मान देना इस जिले के लोगों की विरासत है। इस विरासत का मान
रखना मेरा भी कर्तव्य है। इस रिपोर्टर से बात चीत में श्री चालके ने कहा...आम आदमी को 24 घंटे
मोबाइल फोन पर उपलब्ध रहूँगा। उसको पुलिस के पास जाने के लिए किसी मिडल मेन को
ढूँढने की जरूरत नहीं है। कोई मुझसे मिलने आया और मैं फोन पर बात करूँ...ये नहीं होगा। उनका कहना था कि पांच छह साल पहले जब मैं यहां रहा
जब प्राथमिकता अलग थी। तब से अब तक काफी बदलाव हुए हैं। इस लिए प्राथमिकता बदलती
रहती हैं। देखुंगा अब क्या प्राथमिकता हो...उसी के अनुरूप बढ़िया काम करेंगे। बीट
सिस्टम को प्रभावी बनाया जाएगा। इसकी बहुत उपयोगिता है इसलिए बीट कांस्टेबल को
मोबाइल की सिम फ्री दी जाती है। खुद मुख्यमंत्री ने इसको लागू किया। बेशक कांस्टेबल
की बदली हो जाए परंतु बीट कांस्टेबल का मोबाइल नंबर वही रहेगा। किसी और कांस्टेबल को यह सुविधा उपलब्ध
नहीं है। बीट कांस्टेबल पहले से अधिक सजगता और कार्यक्षमता से काम करे यह प्रयास
किया जाएगा। बातचीत हो रही थी कि संगठन ज्ञापन देने आ गया। कुछ लोगों को एसपी ने
बुलाया...जो आए उनमे महेश पेड़ीवाल भी थे। एसपी
उनको देखते ही बोले.. कैसे हो महेश पेड़ीवाल जी।ज्ञापन देने वालों ने धर्मांतरण की
बात की। एसपी ने इस विषय पर मुस्कराते हुए जो तर्क दिये उससे मुस्कराते चेहरे के पीछे
विचारों की दृढ़ता भी दिखाई दी। उनके तर्कों से सभी निरुतर हो गए। बाहर आकर एक नेता
बोला...एसपी मस्त है यार। सच में आज तो एसपी मस्त हैं.....कल इस क्षेत्र की हवा
क्या करेगी...इसकी चर्चा मौका मिला तो फिर कभी। सज्जाद मिर्जा कहते
हैं...मुझे देखा जो तुमने मुस्करा कर,मैं अपने आप को अच्छा लगा हूँ।
जयपुर के राजनीतिक और सत्ता के गलियारों की खबर
श्रीगंगानगर-बीजेपी
और कांग्रेस के नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है।एक दूसरे को निपटाने के
फेर में खुद निपट रहें हैं। वसुंधरा राजे 60-65 विधायकों के इस्तीफे आ जाने से खुश
हैं। विरोधी ये सोच कर प्रसन्न हैं कि प्रदेश में सीट तो दो सौ हैं...मैडम के साथ तो इतने ही
हैं। कार्यकर्ताओं का भी जोड़ बाकी किया जा रहा है। लाखों कार्यकर्ताओं में से हजारों
ने मैडम का समर्थन किया....बाकी किसके साथ है?जीत अपने आप चल कर मैडम की ओर आ रही थी। मैडम पीछे हो
ली। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को आज भी सामंतशाही आँख दिखाती है। विश्वेन्द्र
सिंह का अभी तो कुछ बिगड़ा नहीं। खुले आम चुनौती दे रहा है....कर लो जिसने जो करना है।
अब डॉ चंद्रभान से कौन पूछे की फिर भरतपुर कब जाना है। इन सब घटनाओं के बाद
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का चेहरा अधिक खिला खिला रहता है। रहेगा ही...इस लड़ाई से
राजनीतिक लाभ तो उन्ही को मिलेगा।
तबादले खुल गए।
मंत्रियों के मेला लगा है। विधायकों का...पुलिस और नागरिक प्रशासन के छोटे बड़े अधिकारियों का।
विधायक लगभग सभी मंत्रियों के पास डिजायर लेकर नमस्कार करने पहुँच रहें हैं वे साफ
कहते हैं विधायक का बेड़ा पार तो मंत्री ही लगाएंगे। मंत्री दूसरे मंत्री को डिजायर
भेज रहा है। किसी सीनियर के पास खुद भी जाना पड़ता है। खास डिजायर सीधे सीएम तक
पहुंचाई जाती है। हर मंत्री का लगभग पूरा स्टाफ इसी काम में लगा है। क्योंकि अगले
साल चुनाव है...इसलिए विधायक,मंत्री
सभी कार्यकर्ताओं को राजी रखने की कोशिश में हैं। बड़े बीजेपी के नेता भी चुपके से
किसी मंत्री को फोन कर किसी अधिकारी/कर्मचारी को अपने क्षेत्र में लगाने का आग्रह
कर देता है। राजनीति में ये चलता है।
बुधवार की शाम मुख्यमंत्री निवास पर आमिर
खान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस थी। आमिर ने शुरुआत
की....अशोक जी का धन्यवाद....अशोक जी ने ये किया....अशोक जी ने वो किया।
कान्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आमिर खान के कंधे पे हाथ रखा और आगे
बढ़े...उन्होने आमिर खान से शायद यही कहा होगा...कम से कम मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत तो कहते यार...और फिर मुस्कुराहट।
Friday, 4 May 2012
पांच करोड़ का कमाल कलेक्टर पहुंचे बी डी की सभा में
श्रीगंगानगर- विकास
डब्ल्यू एसपी के सीएमडी बी डी अग्रवाल
द्वारा प्रशासन को नगर के विकास हेतु दिये गए पांच करोड़ रुपए ने धान मंडी के
नेताओं को हासिए पर डाल दिया....उनको कागजी नेता बना दिया। पांच करोड़ रुपए का
ही कमाल है कि जिला कलेक्टर अंबरीष कुमार खुद धान मंडी पहुंचे। बी डी अग्रवाल की
ओर से आयोजित किसानों,व्यापारियों
की सभा को संबोधित किया। यह पहला मौका है जब जिला कलेक्टर किसी ऐसे व्यक्ति की सभा में गए जो उद्योगपति होने के साथ साथ जमींदारा पार्टी नामक राजनीतिक दल और एक किसान
संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। नगर में किसान,मजदूर,
आम आदमी से जुड़ी समस्याओं पर छोटी बड़ी सभाएं होती रहती हैं। राजनीतिक भी और गैर राजनीतिक भी। किसी
भी जिला
कलेक्टर द्वारा कभी इस प्रकार की सभा में जाने की जानकारी
नहीं है। यह बी डी अग्रवाल के पांच करोड़ रुपए ही थे
जिन्होने वर्तमान कलेक्टर अंबरीष कुमार को परंपरा तोड़ सभा में जाने
के लिए प्रेरित किया। वरना धान मंडी में बारदाने की समस्या हर बार होती है।
व्यापारी,किसान,मजदूर आंदोलन करते हैं। इस बार भी हुआ। सबसे
पुरानी व्यापारिक संस्था दी गंगानगर ट्रेडर्स असोसियेशन और कच्चा आढ़तिया संघ के पदाधिकारियों ने किसानों
के साथ मंडी ऑफिस में अधिकारी का घेराव किया। दूसरे दिन बी डी अग्रवाल ने मोर्चा
संभाला। वे जिला प्रशासन से मिले। प्रशासन के मुखिया जिला कलेक्टर ने बुधवार को
मंडी आने का वादा किया। वादा निभाते हुये
कलेक्टर ने बी डी अग्रवाल की सभा में पहुँच कर नई शुरुआत
की। बी डी अग्रवाल की बल्ले बल्ले हुई। सालों से मंडी में राजनीति करने वाले
व्यापारियों को बी डी अग्रवाल के झंडे के नीचे आना पड़ा। जिला कलेक्टर ने सभा में
क्या वादा किया....क्या कहा....बारदाना आएगा या नहीं...यहअलग बात है। बात तो ये
कि इससे पहले जिला कलेक्टर कभी इस प्रकार की सभाओं में नहीं जाते थे। कानून
व्यवस्था के लिए बहुत जरूरी हुआ तो किसी एडीएम को भेज दिया....वह भी सभा में नहीं...आजू-बाजू। नेताओं से बात
की...लौट गए....जैसा चमत्कार बी डी
अग्रवाल ने दिखाया ऐसा कभी देखने को नहीं मिला। कहीं पढ़ा था....सब पूछेंगे आप कैसे हैं,जब तक आपके पास पैसे हैं।
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