हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Thursday, 22 September 2011
Wednesday, 21 September 2011
जेल उपाधीक्षक रिश्वत लेते पकड़ा
श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिला जेल के उप अधीक्षक महेश बैरवा को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथो गिरफ्तार कर लिया। उसने पांच सौ रूपये रिश्वत के धोलीपाल के बलराम पुनिया से ली थी। जैसे ही उसको कार्यवाही की शंका हुई उसने पांच सौ रूपये टॉयलेट में डालकर पानी चला दिया।ब्यूरो ने यह नोट टॉयलेट तोड़ कर निकाला। वैसे तो उसके हाथ रंगीन हो गए थे। सूत्रों के अनुसार उसने यह राशि हत्या केआरोपियों से उनकी परिवार की महिलाओं को मिलाने के लिए लिए थे। कुलविंदर सिंह तथा उसके परिवार के आठ सदस्य हत्या के आरोप में इस जेल में हैं। यह कार्यवाही बीकानेर के अतिरिक्त पुलिश अधीक्षक रवि गौड़ ने की।
Sunday, 18 September 2011
पुत्र के कंधे को तरस गई पिता की अर्थी
श्रीगंगानगर-सनातन धर्म,संस्कृति में पुत्र की चाहना इसीलिए की जाती है ताकि पिता उसके कंधे पर अंतिम सफर पूरा करे। शायद यही मोक्ष होता होगा। दोनों का। लेकिन तब कोई क्या करे जब पुत्र के होते भी ऐसा ना हो। पुत्र भी कैसा। पूरी तरह सक्षम। खुद भी चिकित्सक पत्नी भी। खुद शिक्षक था। तीन बेटी,एक बेटा। सभी खूब पढे लिखे। ईश्वर जाने किसका कसूर था? माता-पिता बेटी के यहाँ रहने लगे। पुत्र,उसके परिवार से कोई संवाद नहीं। उसने बहिनों से भी कोई संपर्क नहीं रखा। बुजुर्ग पिता ने बेटी के घर अंतिम सांस ली। बेटा नहीं आया। उसी के शहर से वह व्यक्ति आ पहुंचा जो उनको पिता तुल्य मानता था। सूचना मिलने के बावजूद बेटा कंधा देने नहीं आया।किसको अभागा कहेंगे?पिता को या इकलौते पुत्र को! पुत्र वधू को क्या कहें!जो इस मौके पर सास को धीरज बंधाने के लिए उसके पास ना बैठी हो। कैसी विडम्बना है समाज की। जिस बेटी के घर का पानी भी माता पिता पर बोझ समझा जाता है उसी बेटी के घर सभी अंतिम कर्म पूरे हुए। सालों पहले क्या गुजरी होगी माता पिता पर जब उन्होने बेटी के घर रहने का फैसला किया होगा! हैरानी है इतने सालों में बेटा-बहू को कभी समाज में शर्म महसूस नहीं हुई।समाज ने टोका नहीं। बच्चों ने दादा-दादी के बारे में पूछा नहीं या बताया नहीं। रिश्तेदारों ने समझाया नहीं। खून के रिश्ते ऐसे टूटे कि पड़ोसियों जैसे संबंध भी नहीं रहे,बाप-बेटे में। भाई बहिन में। कोई बात ही ऐसी होगी जो अपनों से बड़ी हो गई और पिता को बेटे के बजाए बेटी के घर रहना अधिक सुकून देने वाला लगा। समझ से परे है कि किसको पत्थर दिल कहें।संवेदना शून्य कौन है? माता-पिता या संतान। धन्य है वो माता पिता जिसने ऐसे बेटे को जन्म दिया। जिसने अपने सास ससुर की अपने माता-पिता की तरह सेवा की। आज के दौर में जब बड़े से बड़े मकान भी माता-पिता के लिए छोटा पड़ जाता है। फर्नीचर से लक दक कमरे खाली पड़े रहेंगे, परंतु माता पिता को अपने पास रखने में शान बिगड़ जाती है। अडजस्टमेंट खराब हो जाता है। कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाने में गौरव का अनुभव किया जाता है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ जाने में शर्म आती है। उस समाज में कोई सास ससुर के लिए सालों कुछ करता है। उनको ठाठ से रखता है।तो यह कोई छोटी बात नहीं है। ये तो वक्त ही तय करेगा कि समाज ऐसे बेटे,दामाद को क्या नाम देगा! किसी की पहचान उजागर करना गरिमापूर्ण नहीं है।मगर बात एकदम सच। लेखक भी शामिल था अंतिम यात्रा में। किसी ने कहा है-सारी उम्र गुजारी यों ही,रिश्तों की तुरपाई में,दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता,बाकी सब बेमानी लिख।
Thursday, 8 September 2011
सम्पति के लिए ससुर ने किया पुत्र वधू पर हमला
श्रीगंगानगर- सम्पति के विवाद में एक आदमीं ने अपने पोतों कि साथ मिलकर अपनी पुत्र वधू पर हमला कर दिया। पीड़ित संतोष सिहाग ने थाना में मुकदमा दर्ज करवाया है। संतोष का पति देवी लाल वकील है। घटना के समय वह कोर्ट में था। संतोष का आरोप है कि दिन में वह घर में नाती पोते के साथ थी। तभी ससुर मोमन राम कुछ व्यक्तियों के साथ आये। सब ने संतोष पर हमला बोल दिया। बहू का गला दबाकर उसे नीचे गिरा दिया। विजेंद्र और राजिया ने संतोष को डंडों से पीटना शुरू कर दिया। हालाँकि घटना के समय काफी लोग मकान के बाहर जमा हो गए थे लेकिन कोई मदद को नहीं आया। बाद में हमलावर खुद ही यह कहते हुए चले गए कि मकान खाली नहीं किया तो जान से मार देंगे। उधर वकील देवी लाल का कहना है कि यह मकान उसका खुद का ख़रीदा हुआ है। परिवार का इसमें कोई लेना देना नहीं है।
Wednesday, 7 September 2011
जब अपने आप नहीं गिरा तो प्रशासन ने गिराया मकान
श्रीगंगानगर-कई घंटे के इंतजार के बावजूद जब क्षतिग्रस्त दो मंजिला मकान नहीं गिरा तो प्रशासन ने उसको गिरा दिया। ऐसा इसलिए करना पड़ा ताकि कोई हादसा ना हो। एस एस बी रोड पर शिव मंदिर के सामने छोटे साइज के मकान का एक हिस्सा थोड़ा धंस गया। इससे मकान एक तरफ को झुक गया। मौके पर लोगों की भीड़ लग गई। पुलिस भी आ गई। उसने ऊपर रहने वाले परिवार से मकान खाली करवा लिया। फिर इन्तजार होनेलगा उसके गिरने का। पत्रकार पहुँच गए उसकी लाइव तस्वीर लेने के लिए। मगर मकान नहीं गिरा। प्रशासन मौके पर पहुँच चुका था। इन्तजार जारी रहा। जब मकान नहीं गिरा तो प्रशासन ने अपनी मशीनरी लगा उस मकान को गिरा दिया। यह काम नगर विकास न्यास ने किया। क्योंकि यह मकान उसी के क्षेत्र में था। न्यास के कार्यवाहक सचिव हितेश कुमार ने बताया कि मकान के निर्माण की ना तो कोई मंजूरी थी। ना ही कोई नक्शा पास था। मकान कृषि भूमि पर बना हुआ था। न्यास ने साथ वाले मकान मालिक को भी नोटिस दिया है। मकान के इस प्रकार धंसने का सही कारण क्या है कहना मुश्किल है। मकान गंदे नाले के एक दम किनारे पर था। संभव है बरसात के कारण नींव में पानी जाने के कारण ऐसा हुआ हो। इसके अलावा साथ में जो मकान बन रहा है उसका निर्माण भी एक कारण हो सकता है। जिस मकान को गिराया गया है वह सब्जी बेचने वाले गिरधारी लाल का है। मकान अपने आप गिरता तो कुछ और नुकसान की आशंका थी। बड़े हादसे को टालने के लिए मकान को गिराया गया। प्रशासन के अनुसार शहर में लगातार हो रही बरसात से कई मकाओं को क्षति पहुंची है।
Tuesday, 6 September 2011
पत्नी को जलाकर मार डालने का आरोप
श्रीगंगानगर-अलग अलग घटनाओं में दो विवाहित महिलाओं की मौत हो गई। इनके सम्बन्ध में हिन्दुमलकोट और पुरानी आबादी थाना में मुकदमें दर्ज करवाए गए हैं। कोनी निवासी गुरमुख सिंह पुत्र चट्टान सिंह ने हिन्दुमलकोट थाना में अपने दामाद के खिलाफ आईपीसी की धारा ४९८ ए,३०२ में प्रकरण दर्ज करवाया है। उसका कहना है कि उसकी लड़की सुनीता की शादी २००३ में जोधपुर के राजेश कुमार के संग हुई थी। शादी के बाद सुनीता की सास,मौसी सास उसे तंग करने लगी। कुछ समय बाद सुनीता कोनी गाँव में आकर रहने लगी। वहीँ उसका पति राजेश भी आ गया। सोमवार की रात को गुरमुख को सुचना मिली की लड़की-दामाद का झगडा हो गया। सुनीता को जली हालत में हॉस्पिटल भर्ती करवाया गया है। मंगलवार को सुबह उसकी मौत हो गई। रिपोर्ट में सुनीता के पति पर आरोप लगाया गया है कि उसने दहेज़ के लिए सुनीता को तेल डाल कर जला डाला। उधर पीलीबंगा के रामप्रकाश पुत्र वजीर चंद ने दामाद सुमित कुमार तथा उसके माता पिता के खिलाफ दहेज़ के लिए उसकी लड़की की हत्या करने के आरोप में केस दर्ज करवाया है।
Monday, 5 September 2011
यह सब होता है
परिवार में कई भाई,बहिन। पिता की दुकान। कोई खास बड़ी नहीं पर घर गृहस्थी मजे से चल रही है।बच्चे पढ़ते हैं। समय आगे बढ़ा। बच्चे भी बड़े हुए। खर्चा बढ़ा। बड़ा लड़का पिता का हाथ बंटाने लगा। बाकी बच्चों की कक्षा बड़ी हुई। खर्चे और अधिक बढ़ गए। चलो एक लड़के ने और घर की जिम्मेदारी संभाल ली। एक भाई पढता रहा।दूसरे भाई उसी में अपने सपने भी देखने लगे।घर की कोई जिम्मेदारी नहीं थी सो पढाई करता रहा। आगे बढ़ता रहा।दिन,सप्ताह,महीने,साल गुजरते कितना समय लगता है।वह दिन भी आ गया जब छोटा बड़ा बन गया। इतना बड़ा बन गया कि जो घर के बड़े थे उसके सामने छोटे पड़ गए। जब कद बड़ा तो रिश्ता भी बड़े घर का आया। रुतबा और अधिक हो गया। खूब पैसा तो होना ही था। भाई,बहिनों की जिम्मेदारी तो पिता,भाइयों ने पूरी कर ही दी। पुश्तैनी काम में अब उतना दम नहीं था कि भाइयों के घर चल सके। इसके लायक तो यही था कि वह भाइयों की मदद करे। उनको अपने बराबर खड़ा करे। ये तो क्या होना था उसने तो पिता की सम्पति में अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया। बड़ा था। सबने उसी की सुनी। देना पड़ा उसकी हिस्सा। अब भला उसको ये कहाँ याद था कि उसके लिए भाइयों क्या क्या किया? बड़े भाइयों का कद उसके सामने छोटा हो गया। इस बात को याद रखने का समय किसके पास कि उसे यहाँ तक पहुँचाने में भाई बहिन ने कितना किस रूप में किया। उसने तो बहुत कुछ बना लिया। भाइयों के पास जो था उसका बंटवारा हो गया।
यह सब किसी किताब में नहीं पढ़ा। दादा,दादी,नाना,नानी ने भी ऐसी कोई बात नहीं सुने। यह तो समाज की सच्चाई है। कितने ही परिवार इसका सामना कर चुके हैं। कुछ कर भी रहे होंगे। कैसी विडम्बना है कि सब एक के लिए अपना कुछ ना कुछ त्याग करते हैं। उसको नैतिक,आर्थिक संबल देते हैं। उसको घर की जिम्मेदारी से दूर रखते हैं ताकि वह परिवार का नाम रोशन कर सके। समय आने पर सबकी मदद करे। उनके साथ खड़ा रहे। घर परिवार की बाकी बची जिम्मेदारी संभाले। उस पर भरोसा करते हैं। परन्तु आह! रे समय। जिस पर भरोसा किया वह सबका भरोसा तोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसा लेता है। उसको यह याद ही नहीं रहता कि आज जो भी कुछ वह है उसमें पूरे परिवार का योगदान है। उसे यहाँ तक आने में जो भी सुविधा मिली वह परिवार ने दी। उसको घर की हर जिम्मेदारी से दूर रखा तभी तो यहाँ तक पहुँच सका। वह बड़ा हो गया लेकिन दिल को बड़ा नहीं कर सका। जिस दुकान पर वह कभी भाई ,पिता की रोटी तक लेकर नहीं आज वह उसमें अपना शेयर लेने के लिए पंचायत करवा रहा है। जो उसने कमाया वह तो उसके अकेले का। जो भाइयों ने दुकान से कमाया वह साझे का। बड़ा होने का यही सबसे अधिक फायदा है कि उसको छोटी छोटी बात याद नहीं रहती।शुक्र है भविष्य के बदलते परिवेश में ऐसा तो नहीं होने वाला। क्योंकि आजकल तो एक ही लड़का होता है। समाज का चलन है कि उसको पढने के लिए बाहर भेजना है। जब शादी होगी तो बेटा बहू या तो बच्चे के नाना नानी को अपने यहाँ बुला लेंगे या बच्चे को दादा दादी के पास भेज देंगे,उसको पालने के लिए। उनकी अपनी जिन्दगी है। प्राइवेसी है।
Saturday, 3 September 2011
अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव समय पर होने मुशिकल
श्रीगंगानगर-मंडी समितियों के १४-१५ सितम्बर को होने वाले अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव आगे हो सकतेहैं। यह संकेत कृषि विपणन मंत्रालय से मिले। इसकी वजह है नगर परिषद्/नगरपालिका/पंचायत से मंडी समितियों के लिए चुने जाने वाले सदस्य का चुनाव स्थगित होना। चुनाव स्थगन का निर्णय हाई कोर्ट के आदेश के बाद कृषि विपणन निदेशालय ने लिए। निदेशालय अब इन चुनाव की अनुमति तभी देगा जब हाई कोर्ट से जरुरी दिशा निर्देश मिल जायेंगे। विभागीय सूत्रों ने बताया कि इन फैसलों के खिलाफ सरकार अपील करेगी। उसके बाद ही इन चुनावों के बारे में कुछ निर्णय लिया जा सकेगा। क्योंकि राजस्थान में कहीं तो मनोनीत पार्षद को वोट का अधिकार है कहीं नहीं। अगर ऐसी स्थिति में चुनाव होते है तो कोई दूसरा पक्ष कोर्ट में चला जायेगा। इसलिए जब तक प्रदेश में एक ही फैसला नहीं होगा तब तक चुनाव करवाना ठीक नहीं। इनके चुनाव ना होने के कारण मनोनयन सदस्यों के लिए ६ सितम्बर को होने वाला गजट नोटिफिकेशन होना मुश्किल है। गजट नोटिफिकेशन नहीं होगा तो अध्यक्ष का चुनाव किसी भी हालत में संभव नहीं। सूत्र कहते हैं कि वर्तमान हालत में १४-१५ सितम्बर को अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का चुनाव होना मुश्किल लगता है। इसके अलावा जयपुर के एक वकील ने मंडी समितियों में महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ एक याचिका लगा रखी है। अगर उसमें कुछ हुआ तो वह फैसला भी चुनाव को प्रभावित करेगा।
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