हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Saturday, 10 December 2011
कांडा के नियुक्ति से अग्रवाल समाज का मान बढ़ा है-बी ड़ी
Sunday, 9 October 2011
नजर उठे तो कजा होती है,
नजर उठे तो कजा होती है,
नजर झुके तो हया होती है।
नजर तिरछी हो तो अदा होती है,
नजर सीधी हो तो फिदा होती है।
Thursday, 22 September 2011
गणेश जी फिर चर्चा में
श्रीगंगानगर- गणेश जी के नाम पर आज शाम को जो चर्चा शुरू हुई वह दुनिया भर में फैल गई। कौन जाने किसने किसको पहला फोन करके या मौखिक ये कहा, गणेश जी की मूर्ति के सामने घी का दीपक जला कर तीन मन्नत मांगो पूरी हो जाएगी। उसके बाद तीन अन्य लोगों को ऐसा करने के लिए कहो। बस उसके बाद शुरू हो गया घर घर में गणेश जी के सामने दीपक जलाने,मन्नत मांगने और आगे इस बात को बताने का काम। एक एक घर में कई कई फोन इसी बात के लिए आए। श्र्द्धा,विश्वास और आस्था कोई तर्क नहीं मानती। अगर किसी के घर में कुछ ऐसा करने को तैयार नहीं थे तो एक ने यह कह दिया-अरे दीपक जलाने में क्या जाता है। कुछ बुरा तो नहीं कर रहे। लो जे हो गया। बस, ऐसे ही यह सब घरों में होने लगा। किसी के पास जोधपुर से फोन आया। तो किसी के पास दिल्ली से। किसी को इसकी सूचना अपने रिश्तेदार से मिली तो किसी को दोस्त के परिवार से। शुरुआत कहाँ से किसने की कोई नहीं जान सकता। 1994 के आसपास गणेश जी को दूध पिलाने की बात हुई थी। देखते ही देखते मंदिरों में लोगों की भीड़ लग गई थी। लोग अपना जरूरी काम काज छोडकर गणेश जी को दूध पिलाने में लगे थे।
Wednesday, 21 September 2011
जेल उपाधीक्षक रिश्वत लेते पकड़ा
Sunday, 18 September 2011
पुत्र के कंधे को तरस गई पिता की अर्थी
श्रीगंगानगर-सनातन धर्म,संस्कृति में पुत्र की चाहना इसीलिए की जाती है ताकि पिता उसके कंधे पर अंतिम सफर पूरा करे। शायद यही मोक्ष होता होगा। दोनों का। लेकिन तब कोई क्या करे जब पुत्र के होते भी ऐसा ना हो। पुत्र भी कैसा। पूरी तरह सक्षम। खुद भी चिकित्सक पत्नी भी। खुद शिक्षक था। तीन बेटी,एक बेटा। सभी खूब पढे लिखे। ईश्वर जाने किसका कसूर था? माता-पिता बेटी के यहाँ रहने लगे। पुत्र,उसके परिवार से कोई संवाद नहीं। उसने बहिनों से भी कोई संपर्क नहीं रखा। बुजुर्ग पिता ने बेटी के घर अंतिम सांस ली। बेटा नहीं आया। उसी के शहर से वह व्यक्ति आ पहुंचा जो उनको पिता तुल्य मानता था। सूचना मिलने के बावजूद बेटा कंधा देने नहीं आया।किसको अभागा कहेंगे?पिता को या इकलौते पुत्र को! पुत्र वधू को क्या कहें!जो इस मौके पर सास को धीरज बंधाने के लिए उसके पास ना बैठी हो। कैसी विडम्बना है समाज की। जिस बेटी के घर का पानी भी माता पिता पर बोझ समझा जाता है उसी बेटी के घर सभी अंतिम कर्म पूरे हुए। सालों पहले क्या गुजरी होगी माता पिता पर जब उन्होने बेटी के घर रहने का फैसला किया होगा! हैरानी है इतने सालों में बेटा-बहू को कभी समाज में शर्म महसूस नहीं हुई।समाज ने टोका नहीं। बच्चों ने दादा-दादी के बारे में पूछा नहीं या बताया नहीं। रिश्तेदारों ने समझाया नहीं। खून के रिश्ते ऐसे टूटे कि पड़ोसियों जैसे संबंध भी नहीं रहे,बाप-बेटे में। भाई बहिन में। कोई बात ही ऐसी होगी जो अपनों से बड़ी हो गई और पिता को बेटे के बजाए बेटी के घर रहना अधिक सुकून देने वाला लगा। समझ से परे है कि किसको पत्थर दिल कहें।संवेदना शून्य कौन है? माता-पिता या संतान। धन्य है वो माता पिता जिसने ऐसे बेटे को जन्म दिया। जिसने अपने सास ससुर की अपने माता-पिता की तरह सेवा की। आज के दौर में जब बड़े से बड़े मकान भी माता-पिता के लिए छोटा पड़ जाता है। फर्नीचर से लक दक कमरे खाली पड़े रहेंगे, परंतु माता पिता को अपने पास रखने में शान बिगड़ जाती है। अडजस्टमेंट खराब हो जाता है। कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाने में गौरव का अनुभव किया जाता है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ जाने में शर्म आती है। उस समाज में कोई सास ससुर के लिए सालों कुछ करता है। उनको ठाठ से रखता है।तो यह कोई छोटी बात नहीं है। ये तो वक्त ही तय करेगा कि समाज ऐसे बेटे,दामाद को क्या नाम देगा! किसी की पहचान उजागर करना गरिमापूर्ण नहीं है।मगर बात एकदम सच। लेखक भी शामिल था अंतिम यात्रा में। किसी ने कहा है-सारी उम्र गुजारी यों ही,रिश्तों की तुरपाई में,दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता,बाकी सब बेमानी लिख।
Thursday, 8 September 2011
सम्पति के लिए ससुर ने किया पुत्र वधू पर हमला
Wednesday, 7 September 2011
जब अपने आप नहीं गिरा तो प्रशासन ने गिराया मकान
Tuesday, 6 September 2011
पत्नी को जलाकर मार डालने का आरोप
Monday, 5 September 2011
यह सब होता है
परिवार में कई भाई,बहिन। पिता की दुकान। कोई खास बड़ी नहीं पर घर गृहस्थी मजे से चल रही है।बच्चे पढ़ते हैं। समय आगे बढ़ा। बच्चे भी बड़े हुए। खर्चा बढ़ा। बड़ा लड़का पिता का हाथ बंटाने लगा। बाकी बच्चों की कक्षा बड़ी हुई। खर्चे और अधिक बढ़ गए। चलो एक लड़के ने और घर की जिम्मेदारी संभाल ली। एक भाई पढता रहा।दूसरे भाई उसी में अपने सपने भी देखने लगे।घर की कोई जिम्मेदारी नहीं थी सो पढाई करता रहा। आगे बढ़ता रहा।दिन,सप्ताह,महीने,साल गुजरते कितना समय लगता है।वह दिन भी आ गया जब छोटा बड़ा बन गया। इतना बड़ा बन गया कि जो घर के बड़े थे उसके सामने छोटे पड़ गए। जब कद बड़ा तो रिश्ता भी बड़े घर का आया। रुतबा और अधिक हो गया। खूब पैसा तो होना ही था। भाई,बहिनों की जिम्मेदारी तो पिता,भाइयों ने पूरी कर ही दी। पुश्तैनी काम में अब उतना दम नहीं था कि भाइयों के घर चल सके। इसके लायक तो यही था कि वह भाइयों की मदद करे। उनको अपने बराबर खड़ा करे। ये तो क्या होना था उसने तो पिता की सम्पति में अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया। बड़ा था। सबने उसी की सुनी। देना पड़ा उसकी हिस्सा। अब भला उसको ये कहाँ याद था कि उसके लिए भाइयों क्या क्या किया? बड़े भाइयों का कद उसके सामने छोटा हो गया। इस बात को याद रखने का समय किसके पास कि उसे यहाँ तक पहुँचाने में भाई बहिन ने कितना किस रूप में किया। उसने तो बहुत कुछ बना लिया। भाइयों के पास जो था उसका बंटवारा हो गया।
यह सब किसी किताब में नहीं पढ़ा। दादा,दादी,नाना,नानी ने भी ऐसी कोई बात नहीं सुने। यह तो समाज की सच्चाई है। कितने ही परिवार इसका सामना कर चुके हैं। कुछ कर भी रहे होंगे। कैसी विडम्बना है कि सब एक के लिए अपना कुछ ना कुछ त्याग करते हैं। उसको नैतिक,आर्थिक संबल देते हैं। उसको घर की जिम्मेदारी से दूर रखते हैं ताकि वह परिवार का नाम रोशन कर सके। समय आने पर सबकी मदद करे। उनके साथ खड़ा रहे। घर परिवार की बाकी बची जिम्मेदारी संभाले। उस पर भरोसा करते हैं। परन्तु आह! रे समय। जिस पर भरोसा किया वह सबका भरोसा तोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसा लेता है। उसको यह याद ही नहीं रहता कि आज जो भी कुछ वह है उसमें पूरे परिवार का योगदान है। उसे यहाँ तक आने में जो भी सुविधा मिली वह परिवार ने दी। उसको घर की हर जिम्मेदारी से दूर रखा तभी तो यहाँ तक पहुँच सका। वह बड़ा हो गया लेकिन दिल को बड़ा नहीं कर सका। जिस दुकान पर वह कभी भाई ,पिता की रोटी तक लेकर नहीं आज वह उसमें अपना शेयर लेने के लिए पंचायत करवा रहा है। जो उसने कमाया वह तो उसके अकेले का। जो भाइयों ने दुकान से कमाया वह साझे का। बड़ा होने का यही सबसे अधिक फायदा है कि उसको छोटी छोटी बात याद नहीं रहती।शुक्र है भविष्य के बदलते परिवेश में ऐसा तो नहीं होने वाला। क्योंकि आजकल तो एक ही लड़का होता है। समाज का चलन है कि उसको पढने के लिए बाहर भेजना है। जब शादी होगी तो बेटा बहू या तो बच्चे के नाना नानी को अपने यहाँ बुला लेंगे या बच्चे को दादा दादी के पास भेज देंगे,उसको पालने के लिए। उनकी अपनी जिन्दगी है। प्राइवेसी है।
Saturday, 3 September 2011
अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के चुनाव समय पर होने मुशिकल
Sunday, 21 August 2011
मैडम का पानी भरता है।
Wednesday, 17 August 2011
अन्ना के समर्थन में भूख हड़ताल

Sunday, 31 July 2011
पैसा फैंको तमाशा देखो
देखो देखो
बाइस्कोप देखो,
धर्मों का सजा है
बाजार देखो,
बाबाओं का बढ़ता
कारोबार देखो,
ये है बापू आशा राम
वैभव की इसकी
बहार देखो,
पैसा फैंको
तमाशा देखो।
Thursday, 28 July 2011
ऑनलाइन अखबार
Tuesday, 26 July 2011
कारगिल विजय दिवस
Monday, 25 July 2011
समाज को पल्ले बांधने की तैयारी
श्रीगंगानगर—सवा दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को निगाह में रख अग्रवाल समाज को सभापति जगदीश जांदू का पल्लू थमाने की तैयारी है। इसके लिए ताना बाना बुन लिया गया है। अग्रवाल सेवा समिति के अध्यक्ष नत्थू राम सिंगला के हाथ में इस महत्वपूर्ण काम की कमान है जो पार्षद के नाते जांदू के करीबी हैं। समिति के छात्रवृति कार्यक्रम में गए समाज के जाने माने व्यक्तियों ने यह सब अपनी आँखों से देखा। दिल से महसूस किया। यहां जगदीश जांदू एंड कंपनी प्रमुखता से मौजूद थी। खुद जगदीश जांदू मंच पर थे। उनके साथ थे आयुक्त हितेश कुमार । अनेक पार्षद अग्रिम पंक्ति में स्थान पाए हुए थे। किसी समाज के कार्यक्रम में किसी गैर अग्रवाल राजनेता की कंपनी की उपस्थिति नई थी। अगर जांदू एंड कंपनी को जनप्रतिनिधि के नाते बुलाया गया तो फिर विधायक राधेश्याम गंगानगर को बुलाया जाना और भी बेहतर होता। आयुक्त के स्थान पर या उनके साथ जिला कलेक्टर की मौजूदगी समारोह को और भी भव्य बनाती। सत्ता के निकट समाज को ले जाना है तो फिर गौड़ साहब कौन सा दूर थे। नगर में रहने अन्य समाज से तालमेल बढ़ाना की इच्छा थी तो फिर अरोड़ा,ब्राह्मण,राजपूत,सिख,नायक,मेघवाल .......... समाज के अध्यक्षों को बुला सम्मानजनक स्थान पर बिठाया जाता। लेकिन ऐसा तो दिल में था ही नहीं। ये नेता जांदू के विरोधी हैं। जबकि श्री सिंगला जांदू के पाले में। जब वे उनके साथ है तो उनका पहला कर्तव्य है अग्रवाल समाज को जांदू का पल्लू पकड़वाना। समिति के मुख्य संरक्षक बी डी अग्रवाल की भी इसमें मूक सहमति दिखी। वरना जांदू एंड कंपनी को बुलाना असंभव था। जांदू की एक मात्र ख़्वाहिश विधायक बनना है। अग्रवाल समाज श्री सिंगला के पीछे लग अगर जांदू का पल्लू पकड़ लेता है तो उसे और क्या चाहिए। यह उनकी लीडरशिप में अग्रवाल समाज का नया इतिहास लिखे जाने का संकेत है। संकेत है नई चेतना का। क्योंकि दूसरे समाज के राजनेता,उसके समर्थक जनप्रतिनिधियों को बुलाने की पहल उनकी ही है। यह उनके खुले विचारों का कमाल है। देखना ये कि अग्रवाल समाज इस बात को समझता है या नहीं। फिलहाल वे जांदू को यह संदेश देने में सफल हो गए कि मेरे नेतृत्व में अग्रवाल समाज उनके साथ है। अग्रवाल समाज अपनी शोभा यात्रा में श्री सिंगला के नेतृत्व में यह नारा “जांदू तुम आगे बढ़ो,अग्रवाल तुम्हारे साथ हैं” लगाते दिखे तो अचरज नहीं होना चाहिए। मजबूर कहते हैं—जो झूठ पे खुल्ला वार करे,जो सच पे जां निसार करे,जो साफ कहे जो साफ रहे, बेखौफ हो हक की बात कहे। खुदगर्ज तेरी दुनिया वाले इसको बगावत कहते हैं।
Tuesday, 19 July 2011
हम सब जानते हैं कि कुछ कोस पर भाषा,बोली बदल जाती है और अखबारों की खबरें भी । श्रीगंगानगर के अखबार में हम जो खबर पढ़ते हैं वह किसी कस्बे,शहर में रहने वाला नहीं पढ़ पाता। अखबार भले ही एक हो मगर खबर एक समान नहीं होती। ऐसे में श्रीगंगानगर से दूर रहने वाले ये नहीं जान पाते कि श्रीगंगानगर क्षेत्र के आर्थिक,सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक,शिक्षा,चिकित्सा,कला,साहित्य,…………. पटल पर क्या हो रहा है। अब सब वही पढ़ेंगे जो श्रीगंगानगर मे रहने वाले। इसके लिए हम शुरू कर रहें हैं ऑनलाइन अखबार www.newsbox4u.com । आज जमाना इंटरनेट का है। धरती का कोई कोना ऐसा नहीं जहां इंटरनेट की पहुँच ना हो। जब इंटरनेट है तो www.newsbox4u.com भी होगा।
यह तभी संभव होगा जब आप इस वेबसाइट को अपना जान हमें अपने इलाके की हर खबर से परिचित करवाएंगे। यह आप ही कर सकते हैं क्योंकि आप अपने इलाके की नब्ज को जानते हैं। उसका नजरिया आपकी नजर में है। आपकी खबर कुछ मिनट में दुनिया की नजर में होगी। उम्मीद है आपकी मार्फत दुनिया आपके इलाके को आपकी नजर से पढ़ पाएगी।
आपका साथी
गोविंद गोयल ,संपादक
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237—मुखर्जी नगर,श्रीगंगानगर[राजस्थान] 335001
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Sunday, 17 July 2011
मंत्री के लिए छोटे अधिकारी

राजस्थान के मंत्री गुरमीत सिंह कुनर ने किसानों को पूरा सिंचाई पानी दिलाने के लिए पंजाब में राजस्थान की नहरों का दौरा किया। पंजाब राजस्थान के हिस्से का पानी कितना कहाँ देता है इसकी जानकारी ली। एक मंत्री को यह सब पंजाब के एक एक्स ए एन ने बताया। राजस्थान के मंत्री के लिए पंजाब का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा। जबकि गुरमीत सिंह कुनर राजस्थान के जल संसाधन मंत्री भी है। ऐसा लगता है की पंजाब ने राजस्थान के मंत्री को कोई अहमियत नहीं दी। पंजाब की धरती पर राजस्थान की नहरों में जितना पानी बहता है उसमें सरे आम चोरी होती है। राजस्थान सरकार कुछ नहीं कर पाती।हरि के पतन पर एक एक्स ए एन था । फिरोजपुर में पंजाब ने अपने एस ई को मंत्री को जानकारी देने के लिए भेजा।
Wednesday, 13 July 2011
पुलिस अधिकारी के डर से मांगी मौत की अनुमति

एक आम आदमी किसी पुलिस अधिकारी के खौफ से मरने की अनुमति मांगे तो बात कुछ हजम हो सकती है। यहाँ तो पुलिस वाला पुलिस अधिकारी के डर से आत्महत्या की अनुमति मांग रहा है। कोतवाली थाना में एक ए एस आई है धर्मपाल। उसका आरोप है कि उसे कोतवाल नारायण सिंह लगातार प्रताड़ित कर रहा है। वह इतना तंग आ गया कि मरना चाहता है। इस बारे में उसने पुलिस अधिकारियों से लेकर राष्ट्रपति तक पत्र लिखा है। पुलिस में इस मामले से हड़कंप मचा हुआ है।
Tuesday, 5 July 2011
कुनर गुजरात की मंडी में
अहमदाबाद—राजस्थान के कृषि विपणन मंत्री श्री गुरमीत सिंह कुनर ने आज यहाँ से 150 किलोमीटर दूर जीरा और ईसबगोल के लिए विख्यात उंझा मंडी का दौरा किया। उनके साथ गुजरात मार्केटिंग बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल था। श्री कुनर ने मंडी की कार्यप्रणाली का अवलोकन किया। मंडी के चेयरमेन, अधिकारियों के साथ बैठक कर विचार विमर्श किया। उन्होने यहाँ के व्यापारियों,किसानों,जनप्रतिनिधियों से मुलाक़ात की। इसके बाद श्री श्री कुनर आलू की जानी मानी मंडी डीसा पहुंचे। यहां भी श्री कुनर ने मंडी का अवलोकन कर यहां विपणन संबंधी सुविधाओं की जानकारी ली। आलू का प्रोसेसिंग प्लांट देखा। श्री कुनर ने दोनों मंडियों मे बोली की प्रक्रिया भी देखी।श्री कुनर ने अहमदाबाद में आधुनिक कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण कर कृषि उत्पादों के आधुनिक भंडारण तरीकों की जानकारी ली। श्री कुनर अपने अधिकारियों के साथ कल रात अहमदाबाद पहुंचे थे।
बुधवार को श्री कुनर का नासिक की मंडी का अवलोकन करने का कार्यक्रम है। नासिक देश भर प्याज की मंडी के रूप में अपनी पहचान रखता है।
श्री कुनर ने बताया कि राजस्थान मे जितना भी जीरा होता है उसका सत्तर से अस्सी प्रतिशत उंझा मंडी में बिक्री हेतु लाया जाता है। श्री कुनर के अनुसार उनके दौरे का मकसद वह जानकारी लेना है जिसके कारण राजस्थान के किसान इतनी दूर अपनी फसल लेकर आते हैं। ताकि उनको वैसी ही सुविधाएं राजस्थान की मंडियों में उपलब्ध करवाई जा सके। श्री कुनर ने बताया कि किसानों को मंडियों मे सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी जो देश की अन्य मंडियों में है। जिससे किसानों को अपने घर से दूर ना जाना पड़े और फसल का बढ़िया दाम घर के आस पास स्थित मंडी में मिल सके।
Saturday, 2 July 2011
चालू है इन्टरनेट
Saturday, 25 June 2011
एक रोटी और
श्रीगंगानगर—पति भोजन कर रहा है। पत्नी उसके पास बैठी हाथ से पंखा कर रही है। जो चाहिए खुद परोसती है मनुहार के साथ। “एक रोटी तो और लेनी पड़ेगी। आपको मेरी कसम।“ पति प्यार भरी इस कसम को कैसे व्यर्थ जाने देता। रोटी खाई। तारीफ की। काम पर चला गया। यह बात आज की नहीं। उस जमाने की है जब बिजली के पंखे तो क्या बिजली ही नहीं हुआ करती थी। संयुक्त परिवार का जमाना था। रसोई बनाता चाहे कोई किन्तु खिलाने का काम माँ का और शादी के बाद पत्नी का था। पति रोटी आज भी खा रहा है। मगर पत्नी घर के किसी दूसरे काम में व्यस्त है। रोटी,पानी,सब्जी,सलाद जो कुछ भी था ,लाकर रखा और काम में लग गई। पति ने कुछ मांगा। पत्नी ने वहीं से जवाब दिया... बस करो। और मत खाओ। खराब करेगी। “तुमको मेरी कसम। आधी रोटी तो देनी ही पड़ेगी। पति ने कहा।“ “ नहीं मानते तो मत मानो। कुछ हो गया तो मुझे मत कहना। यह कहती हुई वह आधी रोटी थाली में डालकर फिर काम में लग गई।“ पति कब पेट में रोटी डालकर चला गया उसे पता ही नहीं लगा । तब और आज में यही फर्क है। रिश्ता नहीं बदला बस उसमें से मिठास गायब हो गई। जो रिश्ता थोड़ी सी केयर से मीठा होकर और मजबूत हो जाता था अब वह औपचारिक होकर रह गया। यह किसी किताब में नहीं पढ़ा। सब देखा और सुना है। रिश्तों में खिंचाव की यह एक मात्र नहीं तो बड़ी वजह तो है ही। एक दंपती सुबह की चाय एक साथ पीते हैं। दूसरा अलग अलग। एक पत्नी अपने पति को पास बैठकर नाश्ता करवाती है। दूसरी रख कर चली जाती है। कोई भी बता सकता है कि पहले वाले दंपती के यहाँ ना केवल माहौल खुशनुमा होगा बल्कि उनके रिश्तों में मिठास और महक होगी जो घर को घर बनाए रखने में महत्वपूर्ण पार्ट निभाती है। क्योंकि सब जानते हैं कि घर ईंट,सीमेंट,मार्बल,बढ़िया फर्नीचर से नहीं आपसी प्यार से बनते हैं। आधुनिक सोच और दिखावे की ज़िंदगी ने यह सब पीछे कर दिया है। यही कारण है कि घरों में जितना बिखराव वर्तमान में है उतना उस समय नहीं था जब सब लोग एक साथ रहते थे। घर छोटे थे। ना तो इतनी कमाई थी ना सुविधा। हाँ तब दिल बड़े हुआ करते थे। आज घर बड़े होने लगे हैं। बड़े घरों में सुविधा तो बढ़ती जा रही है मगर एक दूसरे के प्रति प्यार कम हो रहा है। बस, निभाना है। यह सोच घर कर गई है। पहले सात जन्म का बंधन मानते थे। अब एक जन्म काटना लगता है।
कुंवर बेचैन कहते हैं—रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर, अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए। एक एसएमएस...अच्छा दोस्त और सच्चा प्यार सौ बार भी मनाना पड़े तो मनाना चाहिए। क्योंकि कीमती मोतियों की माला भी तो टूटने पर बार बार पिरोते हैं।
Sunday, 12 June 2011
कलेक्टर बेटी के रूप में
Monday, 6 June 2011
जूता फिर हुआ महत्वपूर्ण
Sunday, 5 June 2011
बाबा योग जानते थे राजनीति नहीं
श्रीगंगानगर—सरकार कुछ भी कर सकती है। जो करना चाहिए वह करे ना करे लेकिन वह जरूर कर देगी जिसकी कल्पना करना मुश्किल होता है। बाबा रामदेव की अगवानी के लिए केंद्र के चार वरिष्ठ मंत्री दंडवत करते हुए हवाई अड्डे पहुंचे। यह पहली बार हुआ। बाबा ने तो क्या सोचना था, किसी राजनीतिज्ञ के ख्याल में भी ऐसा नहीं आ सकता कि चार बड़े मंत्री किसी के स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर आ सकते हैं। चलो इसे बाबा के चरणों में सरकार का बड़ापन मान लेते हैं। विनम्रता कह सकते हैं। शराफत का दर्जा दे दो तो भी कोई हर्ज नहीं। किन्तु कुछ घंटे के बाद ऐसा क्या हुआ कि सरकार का बड़ापन बोना हो गया। विनम्रता बर्बरता में बदल गई। शराफत के पीछे घटियापन नजर आने लगा। जिस सरकार के मंत्री दिन में किसी सज्जन पुरुष का सा व्यवहार कर रहे थे, रात को उनकी प्रवृति राक्षसी हो गई। रामलीला मैदान में रावण लीला होने लगी। सात्विक स्थान पर तामसिक मनोस्थिति के सरकारी लोग उधम मचाने लगे। सब कुछ तहस नहस कर दिया गया। जिस सरकार को जनता ने अपनी सुरक्षा के लिए चुना, उसी के हाथों उनको पिटना पड़ा। जिस बाबा के चरणों मे सरकार लौटनी खा रही थी उनको नारी के वस्त्र पहन कर भागना पड़ा। इससे अधिक किसी की ज़लालत और क्या हो सकती है। लोकतन्त्र में सरकार का इस प्रकार का बरताव अगर होता है तो फिर तानाशाही में तो पता नहीं क्या कुछ हो जाए। असल में बाबा योग सीखे और फिर सिखाते रहे। राजनीति के गुणा,भाग का योग उनको करना नहीं आया। राजनीति का आसान उनको आता नहीं था। यहीं सब गड़बड़ हो गया। उनको चार मंत्री आए तभी समझ जाना चाहिए था कि सब कुछ ठीक नहीं है। यह सब प्रकृति के विपरीत था। प्रकृति के विपरीत आंखों को,मन को सुकून देने वाला भी हो तो समझो कि कहीं न कहीं कुछ ना कुछ ठीक नहीं है। यह संभल जाने का संकेत होता है। बाबा नहीं समझे। गलत फहमी में रहे। वे ये भूल गए कि
जो लोग इस राष्ट्र को अपनी ही संपति समझते हैं वे अपने काले धन को राष्ट्रीय संपति घोषित करने की मांग क्यों मानेंगे? यह तो डबल घाटा हुआ। अरे भाई, इनके यहाँ तो केवल इंकमिंग ही है, आउट गोइंग वाला सिस्टम तो इनके जीवन में है ही नहीं । ये केवल और केवल लेना जानते हैं देना नहीं। जब इनसे जनता मांग करती है तो इनको ऐसे लगता है जैसे कोई इनकी संपति में से हिस्सा मांग रहा हो। फिर वही होता है जो रामलीला मैदान में हुआ। मजबूर कहते हैं—पूरी मैं दिल की छह करूँ या दुनिया की परवाह करूँ, तू बता मैं क्या करूँ। हक के लिए लड़ मरूँ या बैठा आह! भरा करूँ, तू बता मैं क्या करूँ।