हर इन्सान हर पल किसी ना किसी उधेड़बुन में रहता है। सफलता के लिए कई प्रकार के ताने बुनता है। इसी तरह उसकी जिन्दगी पूरी हो जाती हैं। उसके पास अपने लिए वक्त ही नहीं । बस अपने लिए थोड़ा सा समय निकाल लो और जिंदगी को केवल अपने और अपने लिए ही जीओ।
Thursday, 29 April 2010
पार्क में एक सुहानी सुबह की कहानी
गर्मी के दिनों की सुहानी सुबह के समय पार्क में काफी रौनक है। एक पत्रकार का आगमन। किसी ने कोई परवाह नहीं की। पांच सात जनों ने दूर से हाय हैल्लो किया बस। उसके मित्र कुछ क्षण उसके पास रुके। वहीँ हवा खोरी करने एक बड़ा सरकारी अफसर आ गया। बहुत से लोग घूमना छोड़ कर उसके आस पास आ गये। जो ज्यादा चालाक थे उन्होंने अपना परिचय भी दे दिया। कुछ लोग उसके साथ साथ सैर करने लगे। अभी अफसर गया भी नहीं था कि सत्तारूढ़ पार्टी का नेता आ गया। उसके आते ही तो अफसर सहित बड़ी संख्या में लोग उसके करीब आ गये। उसका जलवा अफसर से अधिक लगा। लेकिन पता नहीं आज क्या बात थी कि अभी नेता जी का जलवा पूरे शबाब पर आया भी नहीं था कि सरकार के एक मंत्री का निजी सचिव पार्क में पहुँच गया। उसके आते ही नेता जी का जलवा ठंडा हो गया। जो लोग नेता जी की हाँ में हाँ मिला रहे थे वे निजी सचिव से दुःख सुख की बात करने लगे। अफसर कहाँ जाता वह तो उनके निकट ही था। मंत्री की कृपा से तो टिका हुआ था। लेकिन ये क्या, मंत्री जी भी वहीँ आ गये। बस अब तो पार्क में सैर को आये लोगों ने अपने परिचितों को भी फोन करके बुला लिया। मंत्री जी का एक समान दरबार लग गया। सब मंत्री के आगे पीछे। दूर बैठ के नेता, अफसर,निजी सचिव के जलवे देखने वाले पत्रकार को भी मंत्री के न केवल निकट आना पड़ा बल्कि फोन करके फोटोग्राफर को बुलाना पड़ा ताकि अख़बार में फोटो सहित खबर लग सके। वही हुआ भी। अगले दिन के अख़बार में मंत्री जी की संवेदनशीलता की जानदार शानदार खबर छपी,फोटो के साथ। ये कोई कहानी नहीं वह है जो आजकल होता है। उन्ही पत्रकारों को आम जन की तवज्जो मिलती है जिसके पत्रकारिता से हटकर सामाजिक सम्बन्ध हों। वरना तो कहीं कोई नहीं पूछता। लोकतंत्र का चौथा खम्बा कहलाने वाला यह मीडिया लोकतंत्र के ठेकेदारों के आगे पीछे घूमता है। ऐसा करना उसकी मज़बूरी है या नहीं ये तो बड़े पत्रकार जाने। लेकिन सच तो यही है। आम आदमी से लेकर पूरा सिस्टम मंत्रियों के इर्द गिर्द रहता है। मंत्री नहीं होता तो नेता या उनका सचिव। वह भी हाथ नहीं आये तो कोई कार्यकर्त्ता ही सही। अब ऐसे में ताकतवर कौन है इसका फैसला कम से कम हम तो नहीं कर सकते।
Wednesday, 28 April 2010
Tuesday, 27 April 2010
रिश्ते लोग दिखावे के
---- चुटकी----
दादा,नाना,चाचा.....
भूल गए हम
अंकल
हुए मशहूर,
रिश्ते लोग
दिखावे के अब
स्नेह हो गया दूर।
दादा,नाना,चाचा.....
भूल गए हम
अंकल
हुए मशहूर,
रिश्ते लोग
दिखावे के अब
स्नेह हो गया दूर।
Sunday, 25 April 2010
Saturday, 24 April 2010
Friday, 23 April 2010
Thursday, 22 April 2010
मोदी होंगे कैच आउट
---- चुटकी----
गलत शोट
के मारे,
मोदी थरूर
बेचारे।
-----
थरूर बोल्ड
मोदी को
कैच आउट
करेगी सरकार,
बस करो
थोडा सा
इन्तजार।
गलत शोट
के मारे,
मोदी थरूर
बेचारे।
-----
थरूर बोल्ड
मोदी को
कैच आउट
करेगी सरकार,
बस करो
थोडा सा
इन्तजार।
Wednesday, 21 April 2010
धर्मों के बाजार
--- चुटकी----
कदम कदम पर
सजे हुए हैं
धर्मों के बाजार,
जिसकी जितनी
ऊँची बिल्डिंग
वहां
उतनी बड़ी कतार।
कदम कदम पर
सजे हुए हैं
धर्मों के बाजार,
जिसकी जितनी
ऊँची बिल्डिंग
वहां
उतनी बड़ी कतार।
Monday, 19 April 2010
Sunday, 18 April 2010
सोनिया मानेगी जरुर
---- चुटकी----
एक ना एक
दिन तो
सोनिया भी
मानेगी जरुर,
देश के सब
मुद्दों पर
भारी है
उनका
शशि थरूर।
एक ना एक
दिन तो
सोनिया भी
मानेगी जरुर,
देश के सब
मुद्दों पर
भारी है
उनका
शशि थरूर।
Thursday, 15 April 2010
Monday, 12 April 2010
मां रोती है
बेटा जब
रोटी नहीं खाता
तब
रोती है मां,
बाद में जब
बेटा रोटी
नहीं देता
तब रोती है मां ।
यह एक दोस्त के मोबाइल फोन में पढ़े गए एक सन्देश से प्रेरित है।
रोटी नहीं खाता
तब
रोती है मां,
बाद में जब
बेटा रोटी
नहीं देता
तब रोती है मां ।
यह एक दोस्त के मोबाइल फोन में पढ़े गए एक सन्देश से प्रेरित है।
Thursday, 8 April 2010
Wednesday, 7 April 2010
जो खबर नहीं है वह खबर है
जाने माने टीवी पत्रकार और एंकर रवीश कुमार ने आज "राजस्थान पत्रिका" शोएब-सानिया की शादी के बारेमें मीडिया में आ रही खबरों पर लेख लिखा है,"एक शादी पर हो हल्ला "। ये बड़े है इसलिए जो लिखा ठीक ही होगा। जनाब यहाँ कुछ हो तो रहा है, तब ख़बरें आ रहीं हैं। मीडिया में तो कुछ ना हो तो भी खबर बन जाती है। जैसे हमारे यहाँ बनी। हमने पूरे मीडिया में "लाशों के कारोबार" का कारोबार करवा दिया। किसी ने कहा कि पुलिस ने लाश बेचीं है। बस उसके बाद हमने वही दिखाया जो उस आदमी ने बताया। अपना दिमाग हम नहीं लगाते, जो दूसरा कहता है वही दिखाते हैं। इस बात को कई दिन हो गए, आज तक तो ऐसी कोई लाश मिली नहीं जिसको बेचा गया हो।जब सेल की हुई लाश का पता लगाने में हम कामयाब नहीं हुए तो हमने हैडिंग बदल दिए। अब मीडिया में लाशों के कारोबार की बजाये लाश देने में अनियमितता के हैडिंग लगाने लगे। यह खबर नहीं थी , लेकिन बने गई। जो पूरे मीडिया के सर चढ़ कर बोली। आज के दौर में जो आदमी खबर बनाने की कला जानता है वह सबसे बड़ा पत्रकार है। खबर है नहीं, मगर बनानी है। श्रीगंगानगर ने यही किया। श्रीगंगानगर में एक परिवार ने मेडिकल कॉलेज को अपने बुजुर्ग की डैड बोडी दान दी। यह खबर किसी को नहीं चाहिए। भारत पाक सीमा पर सुरक्षा बालों ने रेगिस्तान को गुले गुलजार बना रखा है। जिसको देखने हर रोज बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सीमा सुरक्षा बल के जवान अधिकारी उनको बोर्डर दिखाते हैं, समझाते हैं। मगर ये बात खबर नहीं है। बस आज के दौर में तो ऐसा हो गया कि जो खबर है वह खबर नहीं है, जो खबर नहीं है वह खबर बना कर चलाई जाती है, दिखाई जाती है। पता नहीं वीजन नहीं रहा या बैठे बैठे खबर बनना मज़बूरी हो गई।
Monday, 5 April 2010
Saturday, 3 April 2010
Friday, 2 April 2010
सच की मंडी ,झूठ की मांग
सच की मंडी में झूठ की मांग। आज के मीडिया का सच और एक मात्र सच यही है। पूरे देश के मीडिया में गत तीन दिनों से " शवों का कारोबार" की प्रधानता है। दिल्ली,जयपुर,नॉएडा,मुंबई में बैठे बड़े बड़े मीडिया वाले इसको अंतिम सच मान रहे हैं। जबकि सच्चाई ये कि इसमें रत्ती भर भी सच्चाई का अंश नहीं है। हाँ, मीडिया को दुकानदारी की तरह देखने वालों के लिए "शवों का कारोबार" है और अभी रहेगा। बात १० माह पहले की है। पुलिस को एक युवक मई २००९ में पार्क में बेहोश मिला। उसे सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। जहाँ उसकी मौत हो गई। पुलिस ने उसका शव मेडिकल कॉलेज को दे दिया। इस बीच किसी थाने में किसी ने अपने बेटे की गुमशुदगी, लापता हो जाने की रिपोर्ट किसी थाने में नहीं दी। बाद में यहाँ के राजकुमार सोनी को पता लगा कि मरने वाला लड़का उसका बेटा था राहुल। सोनी बीजेपी के बड़े नेता हैं। उन्होंने मेडिकल कॉलेज से अपने बेटे का शव वापिस लेकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया। सोनी ने अलग अलग लोगो,पुलिस पर इस मामले में तीन मुकदमे दर्ज करवाए। यह सब १० माह पहले यहाँ के "प्रशांत ज्योति" नामक अख़बार में छप चुका है। ये कहना अधिक सही है कि अख़बार का मालिक संपादक ओ.पी बंसल ही इस मामले को उठाने का असली सूत्रधार है। गत दिवस सोनी जी ने जयपुर में प्रेस कांफ्रेंस करके पुलिस पर शवो को मेडिकल कॉलेज को बेचने के आरोप लगाये। बस उसके बाद से प्रशासन से लेकर सरकार तक हल्ला मच गया। मीडिया में हैड लाइन बन गया शवों का कारोबार। किसी ने इस बात की कोई तहकीकात नहीं की कि आरोप लगाने वाला कौन है? उसकी मंशा क्या है? उसने क्यों नहीं दी अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट? अगर शवों को बेचा जाता तो उसके बेटे का शव उसको वापिस कैसे मिलता! पुलिस ने गत पांच सालों में बहुत अज्ञात/लावारिश शव मेडिकल कॉलेज को दिया। इनमे से कई वारिसों द्वारा पहचान कर लिए जाने के बाद मेडिकल कॉलेज ने उनको ससम्मान वापिस किया। अगर सोनी जी के बेटे का शव बेचा गया, उसको सबूत उनके पास हैं तो सोनी जी को चाहिए वह सबूत उन मीडिया को दे, जो आजकल वाच डॉग की तरह उनके आगे पीछे घूम रहा है। कुछ ना कुछ पाने के लिए,स्टोरी बनाने के लिए। सोनी जी किसी को दुदकारते हैं किसी को पुचकारते हैं। न्यूज़ चैनल में बैठे बड़े बड़े पत्रकार अपने श्रीगंगानगर,जयपुर के पत्रकारों को "शवों के कारोबार" को अलग अलग एंगल से उठाने के निर्देश ऐसे देते हैं जैसे वे उनको साल में लाखों का पैकेज देते हों । इस खबर के कारण कई पत्रकार और पैदा हो गए। दूर बैठे चैनल वालों को इस से कोई मतलब नहीं कौन आदमी किसके लिए क्या आरोप लगा रहा है। उनको तो सनसनी फैलानी है। सनसनी फ़ैल रही है। अभी तक तो एक भी शव ऐसा नहीं मिला जिसको बेचा गया हो। हाँ, ये जरुर है कि शव को मेडिकल कॉलेज को देने के लिए जो निर्धारित नियम है उसकी पालना नहीं हुई। पुलिस भी इस बात को मानती है कि शव देने में राजस्थान ऐनोटोमी एक्ट १९८६ की पूरी तरह पालना नहीं हुई । इस मामले में डरी सहमी पुलिस चाहे कुछ ना बोले लेकिन ये सच है कि इस एक्ट की पालना श्रीगंगानगर में तो क्या राजस्थान के किसी हिस्से में होना मुमकिन नहीं। इसके तहत शव को शिनाख्त के लिए तीन दिन तक मुर्दाघर में रखना होता है। यहाँ एक दिन रखना मुश्किल होता है। क्योंकि मुर्दाघरों में शव सुरक्षित रखने की व्यवस्था ही नहीं हैं है। तब क्या होगा? देश के जीतने बड़े बड़े पत्रकार हैं वे सब यहाँ आयें और और इस बात की पड़ताल करें कि क्या सचमुच शवों का कारोबार हुआ है! अब बात उठेगी कि राजकुमार सोनी को न्याय मिलना चाहिए। मैं कहता हूँ राजकुमार सोनी को ही क्यूँ न्याय तो सभी को मिलना चाहिए। न्याय पर तो सबका बराबर का अधिकार है। ऐसा तो नहीं कि जो अधिक हल्ला मचाए उसको न्याय मिले बाकी के साथ चाहे अन्याय ही करना पड़े। इसको तो फिर अधुरा न्याय ही कहा जायेगा।कुछ मीडिया शायद यही करवाना चाहता है।
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